भारत का त्योहार, चीन की बहार
पावन श्रावण मास का शुभारंभ हो चुका है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से प्यासी धरती को तृप्त करने हेतु मेघ अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रहे हैं और चहुंओर खिली हरियाली से मानो धरती माता मेघ के प्रयासों का प्रत्युत्तर दे रही है।
हमारे देश में श्रावण मास के पश्चात देश में धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला का शुभागमन होता है जिसका पहला सोपान देवाधिदेव महादेव के व्रत से प्रारंभ हो रक्षाबंधन पर समाप्त होता है।
इसी दौरान देशभर से श्रद्धालु पवित्र श्री अमरनाथ यात्रा का सौभाग्य भी प्राप्त करते हैं जिसका विराम रक्षाबंधन के दिन छड़ी मुबारक यात्रा के साथ होता है।
रक्षाबंधन भाई-बहन के वात्सल्य का त्यौहार है और जीवन का प्रथम त्यौहार है जो भाई को बहन के प्रति कर्त्तव्य-दायित्त्व का बोध कराता है। एक ऐसा त्यौहार जो तबसे प्रारम्भ हो जाता है जब कई बार छोटे भाई या बहन की आँखें भी सही तरीके से खुली नहीं होती और न इसका अर्थ समझ आता है।
भाई-बहन एक साथ बढ़ते हैं, पढ़ते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं और जीवन में कदम से कदम मिलाकर उन्नति की सीढ़ियां चढ़ते हैं।
त्योहारों का असल उद्देश्य भागदौड़ भरी जिंदगी में से कुछ पल पूरे परिवार, समाज और अपने सगे संबंधियों के साथ बिताकर खुशियां बांटना है लेकिन विगत कुछ वर्षों से जिस प्रकार हमारे देश की इन खुशियों को चीन के बाजार ने अपने हित एवं स्वार्थपूर्ति हेतु उपयोग करना प्रारम्भ किया है वह हम सबके लिए विचारणीय है। हमारे आसपास के छोटे-छोटे व्यापारी जो राखियां बनाकर एक त्योहार से आने वाले वर्षभर के मुश्किल दिनों हेतु कुछ राशि संजोकर रखते थे, उनका काम बंद हो गया है क्यूंकि बाजार की अंधी दौड़ में हम अधिक लाभ कमाने हेतु स्वदेशी को छोड़ आयातित वस्तुओं के और आकर्षित हो रहे हैं, भले ही उनके दूरगामी परिणाम हमारे हित में लेशमात्र भी नहीं हैं।
हिन्दुस्थान में कोई भी त्योहार हो, चीन अपनी व्यापार-बुद्धि से उसका पूर्ण लाभ उठाता है। हमारे देश के भी कुछ व्यापारी बंधु अधिक लाभ कमाने के चक्कर में विदेशों में निर्मित वस्तुएं शौक से बेचते हैं और इसमें अपनी शेखी समझते हैं जबकि सच्चाई इसके विपरीत होती है। चीन में बानी वस्तुओं को अपने देश में खपाकर जहां एक और हम चीन जैसे विस्तारवादी देश को अधिक सक्षम बनाते हैं वहीं अपने देश के लघु और कुटीर उद्योगों का सर्वनाश कर उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर करते हैं।
रक्षाबंधन के त्यौहार के संदर्भ में कम से कम इतना ध्यान रखिए कि इस दिन बहनें भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांध कर उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं और अपनी सुरक्षा का दायित्व बोध कराती हैं। लेकिन चीन निर्मित वस्तुएं खरीद कर क्या हम देश की सीमा पर हमारी रक्षा में तैनात किसी सैनिक बंधु की जान जोखिम में नहीं डाल रहे?
आइए हम सब अपने त्योहारों पर विदेशी उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार करने का प्रण करें और यथासंभव स्वदेशी लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करें।
.... और हाँ, यह भी स्मरण रहे रक्षा बंधन पर मिठाई का काम अपने स्थाई विश्वासपात्र हलवाई द्वारा बनाई मिठाई से ही लें, किसी विदेशी चॉकलेट या अन्य वस्तु से नहीं, क्यूंकि असली मिठास स्वदेशी में है और असली मजा... 'सब के साथ'।