Tuesday, July 19, 2022

भारत का त्योहार, चीन की बहार

 भारत का त्योहार, चीन की बहार


पावन श्रावण मास का शुभारंभ हो चुका है।   ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से प्यासी धरती को तृप्त करने हेतु मेघ अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रहे हैं और चहुंओर खिली हरियाली से मानो धरती माता मेघ के प्रयासों का प्रत्युत्तर दे रही है। 

हमारे देश में श्रावण मास के पश्चात देश में धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला का शुभागमन होता है जिसका पहला सोपान देवाधिदेव महादेव के व्रत से प्रारंभ हो रक्षाबंधन पर समाप्त होता है। 


  इसी दौरान देशभर से श्रद्धालु पवित्र श्री अमरनाथ यात्रा का सौभाग्य भी प्राप्त करते हैं जिसका विराम रक्षाबंधन के दिन छड़ी मुबारक यात्रा के साथ होता है। 

रक्षाबंधन भाई-बहन के वात्सल्य का त्यौहार है और जीवन का प्रथम त्यौहार है जो भाई को बहन के प्रति कर्त्तव्य-दायित्त्व का बोध कराता है।  एक ऐसा त्यौहार जो तबसे प्रारम्भ हो जाता है जब कई बार छोटे भाई या बहन की आँखें भी सही तरीके से खुली नहीं होती और न इसका अर्थ समझ आता है।   


भाई-बहन एक साथ बढ़ते हैं, पढ़ते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं और जीवन में कदम से कदम मिलाकर उन्नति की सीढ़ियां चढ़ते हैं।  

त्योहारों का असल उद्देश्य भागदौड़ भरी जिंदगी में से कुछ पल पूरे परिवार, समाज और अपने सगे संबंधियों के साथ बिताकर खुशियां बांटना है लेकिन विगत कुछ वर्षों से जिस प्रकार हमारे देश की इन खुशियों को चीन के बाजार ने अपने हित एवं स्वार्थपूर्ति हेतु उपयोग करना प्रारम्भ किया है वह हम सबके लिए विचारणीय है।  हमारे आसपास के छोटे-छोटे व्यापारी जो राखियां बनाकर एक त्योहार से आने वाले वर्षभर के मुश्किल दिनों हेतु कुछ राशि संजोकर रखते थे, उनका काम बंद हो गया है क्यूंकि बाजार की अंधी दौड़ में हम अधिक लाभ कमाने हेतु स्वदेशी को छोड़ आयातित वस्तुओं के और आकर्षित हो रहे हैं, भले ही उनके दूरगामी परिणाम हमारे हित में लेशमात्र भी नहीं हैं। 

हिन्दुस्थान में कोई भी त्योहार हो, चीन अपनी व्यापार-बुद्धि से उसका पूर्ण लाभ उठाता है।   हमारे देश के भी कुछ व्यापारी बंधु अधिक लाभ कमाने के चक्कर में विदेशों में निर्मित वस्तुएं शौक से बेचते हैं और इसमें अपनी शेखी समझते हैं जबकि सच्चाई इसके विपरीत होती है।   चीन में बानी वस्तुओं को अपने देश में खपाकर जहां एक और हम चीन जैसे विस्तारवादी देश को अधिक सक्षम बनाते हैं वहीं अपने देश के लघु और कुटीर उद्योगों का सर्वनाश कर उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर करते हैं। 

रक्षाबंधन के त्यौहार के संदर्भ में कम से कम इतना ध्यान रखिए कि इस दिन बहनें भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांध कर उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं और अपनी सुरक्षा का दायित्व बोध कराती हैं।  लेकिन चीन निर्मित वस्तुएं खरीद कर क्या हम देश की सीमा पर हमारी रक्षा में तैनात किसी सैनिक बंधु की जान जोखिम में नहीं डाल रहे?  

आइए हम सब अपने त्योहारों पर विदेशी उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार करने का प्रण करें और यथासंभव स्वदेशी लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करें। 


.... और हाँ, यह भी स्मरण रहे रक्षा बंधन पर मिठाई का काम अपने स्थाई विश्वासपात्र हलवाई द्वारा बनाई मिठाई से ही लें, किसी विदेशी चॉकलेट या अन्य वस्तु से नहीं, क्यूंकि असली मिठास स्वदेशी में है और असली मजा... 'सब के साथ'।  


Wednesday, June 29, 2022

उद्धव की मृग मरीचिका का अंत 


महाराष्ट्र की सत्ता में सर्वोपरि स्थान पर स्थापित उद्धव की सत्ता की सही अर्थों में मृग मरीचिका का अंत सर्वजन को अतिप्रिय लग रहा है कारण कि वे हिन्दुस्थान के हिन्दू ह्रदय सम्राट बाला साहब ठाकरे जी के सिद्धांतों को  तिलांजलि देकर आज तक इस पद पर कायम रहे। 

जय भवानी जय शिवाजी के नारे के साथ महाराष्ट्र की सत्ता में अपना वर्चस्व स्थापित करने वाली शिवसेना के जितने कमजोर सेनापति उद्धव ठाकरे साबित हुए शायद इतिहास में कोई ऐसा अन्य उदाहरण नहीं है।   सत्ता की भूख ने शिवसेना के लक्ष्य को जिस प्रकार प्रभावित किया और उद्धव उसके शिकार हुए वह आज स्वयं एक शर्मनाक उदाहरण स्थापित हो गया है। 

एकनाथ शिंदे जैसे सर्वगुणसम्पन्न शिवसैनिक को अपनी पार्टी से विमुख कर सत्ता हस्तांतरण का ऐसा उदाहरण इतिहास में पुनः प्राप्त नहीं होगा।  यह केवलमात्र सत्ता हस्तांतरण का उदाहरण नहीं अपितु अपने सिद्धांतों और मर्यादाओं के साथ समझौता करने का दंड भुगतने का सर्वोत्तम उदाहरण बनकर समाज के सम्मुख प्रस्तुत होगा। 

अब सम्पूर्ण सनातनी समाज के सम्मुख यक्ष प्रश्न बनकर यह बात समक्ष आती है कि क्या अपने व्यक्तिगत लाभ की प्राप्ति हेतु हिन्दू हृदय सम्राट बालाजी ठाकरे जैसे व्यक्तित्व का परिवार सर्वस्व समर्पण हेतु आह्लादित होगा?  या जिस प्रकार सोशल मीडिया में बार बार भाजपा पर शिवसेना द्वारा मुख्यमंत्री के पुत्र को दोषारोपण कर उलझाने का तथाकथित प्रयास किया गया था,यह सब उसकी परिणति है। 

खैर...  सत्य जो भी हो..... वर्तमान परिस्तिथियों में शिवसेना और उनके सर्वमान्य नेता उद्धव जी को सम्पूर्ण राष्ट्र धृतराष्ट्र की भूमिका में देख रहा है। 

अब उद्धव ठाकरे साहेब के पास केवलमात्र एक ही प्रयास उपलब्ध है और वह है कि जब भाजपा अपना बहुमत साबित करने का प्रयास विधानसभा में करती है तो उनका सिद्धातों के आधार पर समर्थन करें और हिन्दू राष्ट्र की नींव को परिपक्व करें। 


जय भवानी जय शिवाजी। 

जय हिन्द जय भारत। 


Tuesday, June 28, 2022

 उदयपुर का आतंकी हत्याकांड - एक चेतावनी 


उदयपुर में मंगलवार को नूपुर शर्मा के तथाकथित समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालने के कारण कन्हैया नामक व्यक्ति की दिनदहाड़े सरेबाज़ार बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी गई।  जिस प्रकार से इस हत्या को अंजाम दिया गया उससे यह साधारण हत्या नहीं अपितु आतंकी हत्याकांड अधिक प्रतीत होता है। सभ्य समाज का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, पंथ, सम्प्रदाय से सम्बद्ध हो, इस पैशाचिक हत्याकांड का समर्थन नहीं कर सकता।  'आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता' कहने वालों के मुंह पर भी यह करारा तमाचा है।   

राजस्थान में जिस प्रकार विगत कुछ समय से राजनैतिक और सामाजिक सद्भावना के पतन की घटनाएं हो रही है, वास्तव में विचलित करने वाली हैं और राज्य सरकार है कि केवल 'सरक' और 'घिसट' रही है। 

कन्हैया को लगभग एक पखवाड़े से लगातार धमकियां दी जा रही थी।  उसने इस सम्बन्ध में, जैसा कि बताया जा रहा है, पुलिस को शिकायत भी दी।  पुलिस के ढुलमुल रवैये और 'आपराधिक मानसिकता को पनपने से पूर्व कुचलने' की नीति पर कायम न रहने की परिणति 'कन्हैया' की आतंकी हत्या के रूप में हुई। 

मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि नूपुर ने क्या कहा, किस सम्बन्ध में कहा, किन परिस्तिथियों में कहा, किसके उकसाने पर कहा, सत्य कहा, मिथ्या कहा, मनगढ़ंत कहा.... आदि आदि।  लेकिन सत्य यह है कि जिस राजनैतिक दल का वह प्रतिनिधित्व कर रही थी उन्होंने राजनैतिक दायित्वों और मर्यादा का निर्वहन करते हुए जो उचित समझा, किया। 

नूपुर शर्मा की बात केवल इसलिए हो रही है क्योंकि आतंकियों ने हत्या करने से पहले उनका समर्थन करने के कारण ही धमकियां दी थी।  लेकिन अब देखने वाली बात यह है कि नूपुर के बयान पर प्रतिक्रिया करने वाले देश क्या इस जघन्य आतंकी हत्याकांड की भी उसी स्वर में निंदा करेंगे या अनदेखा कर देंगे।  अभी तक किसी भी तथाकथित सभ्य देश द्वारा ऐसी निंदा सुनाई नहीं दी है और कटु सत्य यह है कि ऐसी अपेक्षा करना भी हास्यास्पद है। 

चलिए हम अन्य देशों को छोड़ अपने देश की ही बात करें।  अपने राजनैतिक स्वार्थ-सिद्धि हेतु छाती पीटने वाले 'बड़ी बिंदी गैंग, 'मोमबत्ती गैंग', 'ढफली गैंग' और सत्ता के चाटुकार बन 'सत्ता की मलाई चाटने वाले गैंग' अब शायद कोमा में हैं या फिर उनके मुंह में दही जम गई है या फिर उनके पैमाने में 'सनातनियों' के विरुद्ध हो रही पैचाशिकताओं का उल्लेख ही नहीं है।  

यह आतंकी हत्याकांड केवल एक हत्या मात्र नहीं है प्रत्युत माँ भारती से प्रेम करने वाले सभी हिन्दुस्तानियों के लिए एक सीख है... चेतावनी है... जागरूक रहने, एकत्र रहने और सक्षम होने की।  हमारे आसपास ही ऐसे लोग पनप रहे हैं जो इस देश की एकता, अखंडता को खंडित करने का कुप्रयास कर रहे है और आपसे प्रेम की बजाय वैमनस्य फैला रहे हैं।   

वर्तमान समय की मांग यही है कि ऐसी जघन्य, कलुषित मानसिकता वाली आतंकी घटनाओं के विरोध में समाज का हर वर्ग धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दरकिनार कर एकसाथ खड़ा हो और चहुंओर यथासंभव भर्त्सना हो और इन पैशाचिक घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने हेतु सार्थक प्रयास हों।   

जय हिन्द! वंदेमातरम !

Sunday, March 13, 2022

 #TheKashmirFiles

#द_कश्मीर_फाइल्स : एक ऐसा चलचित्र जिसने हिन्दुस्थान के सभी सनातनियों को झकझोर कर रख दिया है।   कारण इससे पूर्व इस सत्य से कोई अवगत ही नहीं था।  लेकिन जैसे ही इस चलचित्र को लोगों ने देखा, देश-विदेश के सोशल मीडिया में एक चर्चा प्रारम्भ हो गई है कि इस सत्य को पूर्व में हम क्यों नहीं जान पाए।  कारण स्पष्ट है, जैसे कि चलचित्र के ही एक दृश्य में बताया गया है 'यदि आप बिकने तो तैयार हैं तो खरीददार भी उपलब्ध हैं' |  

अब इस चलचित्र के बारे  में लोगों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होनी प्रारम्भ हुई है कि क्या वास्तव में ऐसा ही हुआ होगा?  यदि उत्तर 'हाँ' है तो फिर तत्कालीन सरकारें क्या कर रही थीं?  क्यों इस जातिसंहार या जातिवध का प्रतिरोध नहीं किया गया? 

इतना ही नहीं आज कश्मीर से पलायन किये हिन्दुओं को पहली बार ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनकी पीड़ा विश्व के समक्ष प्रथम बार सत्य के साथ प्रस्तुत की जा रही है।  आप कल्पना कीजिये की कि ऐसे लोग जिनके साथ आपके दशकों के संबंध हों वही आपके पलायन को लक्षित कर आपके और आपके परिवार के प्राणों के दुश्मन बन जाएं, आतंकवादियों के सहयोगी बन जाएं और तत्कालीन सरकार मूकदर्शक के अतिरिक्त कोई और भूमिका का निर्वाह न कर रही हो तो आप किस लोकतंत्र में निर्वाह कर रहे हैं।  

कश्मीर के हिन्दुओं के इस संकट के समय में भी देश-दुनिया को यह बताया गया कि कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा है जो एक सोची-समझी योजना के अंतर्गत किया गया, किसी को यह नहीं बताया गया कि हिन्दुओं का पलायन हो रहा है।  क्योंकि हिन्दुओं को यदि जाति के अनुसार विभाजित किया जाए तो जातिगत पलायनकर्ताओं की गिनती कम हो जाती है।  इससे यह शिक्षा भी मिलती है और हम सबको भी लेनी चाहिए की सनातनी केवल सनातनी है, किसी जातिवाद में यदि विभाजित होता है तो विधर्मियों को आपके अस्तित्व को समाप्त करने का आसान अवसर आप उपलब्ध कराते हैं। 

इस दुर्घटना के समय मेरी पीढ़ी के लोग जो आज पांचवें दशक में हैं  या प्रवेश कर रहे हैं अपनी तरुणावस्था में थे और समाचार पत्रों में घटनाक्रम पढ़कर इस घटना की गंभीरता को नहीं समझ पाए आज जब स्वयं परिवार - पत्नी और बच्चों - वाले हो गए हैं तो गंभीरता को समझ पा रहे हैं और अपने आसुओं को रोक नहीं पा रहे।  क्या हम अगली पीढ़ी को भी इसी प्रकार आंसू बहाने के लिए छोड़ दें या मुखरित होकर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने हेतु गंभीर हों।  निर्णय आपका?

आज हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि एक समर्थ, सक्षम, आत्मनिर्भर, विश्व में सम्मानित हिन्दुस्थान के नागरिक हैं जो न केवल राष्ट्रवाद की भावना को पुनर्जीवित कर रहा है अपितु विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है।  

हम सबके समक्ष यक्ष प्रश्न यह है कि क्या वर्तमान परिदृश्य में भी हम सनातन धर्म की 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' 'वसुधैव कुटुम्बकम्' और राष्ट्रवाद की भावनाओं को आत्मसात करेंगे या जाति, समुदाय या संप्रदाय में विभाजित रहकर अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न उत्पन्न होने देंगे। 

इस चलचित्र के माध्यम से एक अवसर आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ है कि अभी भी समय है कि हम सब हिन्दुस्थान के नागरिक अपने घर-परिवार-मोहल्ले-समाज और प्रदेश को जागृत करें, एकत्र करें, राष्ट्रवाद को प्रबल करें और नए हिन्दुस्थान के निर्माण में अपना योगदान देते हुए आने वाले पीढ़ी को सशक्त बनाएं।  

#जय_हिन्द_जय_हिन्दुस्थान 

Saturday, October 22, 2011

से नो टु क्रेकर्स - पटाखों पर प्रतिबन्ध - कोई षड्यंत्र तो नहीं

अक्सर देखने में आता है कि दीपावली के कुछ दिन पूर्व देश भर के तथाकथित पर्यावरण संरक्षक 'से नो टु क्रेकर्स' जैसे नारों के साथ कुकुरमुत्तों कि भांति उग आते हैं.  आश्चर्य की बात है कि पूरा साल इन लोगों को पर्यावरण के नुकसान की कोई चिंता नहीं होती और दीपावली के आसपास इनकी नींद खुल जाती है और ये अपनी दुकाने खोल कर चिल्लाना प्रारंभ कर देते हैं - 'पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाओ'.   इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.  ध्वनि प्रदूषण हो रहा है, वायु प्रदूषण हो रहा है आदि आदि.
इन पर्यावरण के ठेकेदारों से कोई पूछे कि भैया जब आपके घर, परिवार या मोहल्ले में कोई शादी या अन्य समारोह होता है तो  न केवल कार्यक्रम स्थल बल्कि आधा-एक किलोमीटर दूर तक उस आवाज़ को क्यों पहुंचाते हो, या आपके परिवार का कोई सदस्य तेज़ आवाज़ में म्यूजिक सिस्टम चला कर उसका आनंद लेता है और पडोसी परेशान होते है, तब ध्वनि प्रदूषण क्यों याद नहीं आता.  जब आप अपने घर का कूड़ा या अन्य बेकार वस्तुओ को खुले में आग की भेंट चढ़ा देते हो तब वायु प्रदूषण की चिंता क्यों नहीं होती?
अपने आप को सभ्य दिखाने कि इस दौड़ में हमारे कुछ मोडर्न स्कूल भी शामिल हो गए हैं.  ये अपने स्कूल के बच्चों को 'से नो टु क्रेकर्स' की तख्तिया लेकर एक छोर से दुसरे छोर तक घुमाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और काम ख़त्म.  पर्यावरण इनकी बला से जाये भाड़ में.
असल में  कथनी और करनी में अंतर की बुरी आदत बच्चे को ऐसे कार्यक्रमों से ही मिलती है.  बच्चे इधर 'से नो टु क्रेकर्स' की तख्तिया फेंकते हैं और घर जाकर अपने माता-पिता से खूब सारे पटाखे दिलाने की जिद करते हैं.  आखिर करे भी क्यों न.  बेचारे बच्चे तो पूरा साल भर से इस त्यौहार का इंतज़ार कर रहे होते हैं. बच्चों को यदि कुछ सिखाने की जरूरत है तो वो है पटाखों को सुरक्षित ढंग से चलाने की न कि पटाखे चलाने से रोकने की क्योंकि कि बच्चा इस बात को मानता ही नहीं और मानेगा भी नहीं. 

ऐसा लगता है कि सरकार और सरकारी मशीनरी ने यह ठान लिया है कि जैसे कैसे भी हो हिन्दुओ की धार्मिक आस्था में हस्तक्षेप करो और हिन्दुओ को उनके धार्मिक रीति रिवाजों से दूर करो.  इस काम में लार्ड  मेकाले की शिक्षा पद्धति में अँधा विश्वास करने वाले और धर्म से विमुख हो चुके लोग उनका अनुसरण करने में लगे हैं.
इन तथाकथित पर्यावरण संरक्षकों ने सिगरेट के धुएं  से हो रहे प्रदूषण के बारे में कभी आपत्ति की हो, ऐसा मुझे स्मरण नहीं होता.  प्लास्टिक की थैलियों के खिलाफ कोई जनजागरण किया हो या वाहनों से हो रहे प्रदूषण के निदान के बारे में कभी चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से कोई ठोस कार्यवाही करने की बात की हो, मुझे नहीं लगता.
इसलिए बंधुवर, यदि पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता असल में है तो दुनिया भर में क्रिसमस और ईसाई नववर्ष पर चलाये जाने वाले पटाखों पर भी प्रतिबन्ध लगवाने हेतु गंभीर प्रयास करें.  क्या वो पटाखे शोर नहीं करते या फिर वे प्रदूषण मुक्त होते हैं.  कृपया विचार करें और हमेशा दीपावली के आसपास बरसाती मेंढक की भांति चिल्लाना बंद करें.  बच्चों को अपनी समृद्ध संस्कृति से जोड़ने का प्रयास करें तोड़ने का नहीं.

Saturday, October 8, 2011

सुशासन एवं स्वच्छ राजनीति हेतु आडवानी जी की जन चेतना यात्रा

देश की राजनीति  में एक नए अध्याय का प्रारंभ करते हुए देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी  जी द्वारा सुशासन एवं स्वच्छ राजनीति हेतु 11 अक्टूबर से जन चेतना यात्रा शुरू की जा रही है.  उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि यह यात्रा किसी भी प्रकार के राजनीतिक लाभ के लिए नहीं अपितु सुशासन एवं स्वच्छ राजनीति के लिए है.
जीवन के 84 वसंत देख चुके और छः दशक से अधिक के राजनीतिक अनुभव वाले व्यक्ति द्वारा यदि यह यात्रा की जा रही है तो जाहिर है इसमें उनका व्यक्तिगत स्वार्थ कुछ नहीं होगा.  फिर उन्हें इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी.   इसका सीधा उत्तर यह है की देश में जिस प्रकार से जनता राजनीति के गिरते हुए स्तर से चिंतित है उसमे यह आवश्यक है की आडवानी जैसी साफ़ छवि वाला व्यक्ति जनता को जागरूक करने की जिम्मेवारी ले.  
चालीस दिनों तक चलने वाली, देश के तेईस प्रदेशो और चार केन्द्रशासित प्रदेशो के लगभग सौ जिलो से निकलने वाली साढ़े सात हजार किलोमीटर लम्बी इस यात्रा का पूरा देश बेसब्री से इन्तजार कर रहा है.  देशवासी इस कुशासन से परेशान हैं और गन्दी होती राजनीति से त्रस्त.  
आडवानी जी की इस पहल का पूरा देश स्वागत कर रहा है और उन्हें इस यात्रा की सफलता के लिए शुभकामना दे रहा है.  11 अक्टूबर से शुरू होने वाली यह यात्रा बहुत जल्द जनांदोलन में परिवर्तित हो जाएगी और देश में जनाकांक्षाओ के अनुरूप सुशासन एवं स्वच्छ राजनीति का शुभारम्भ होगा.
आडवानी जी की इस पहल के लिए उन्हें साधुवाद!


Wednesday, September 7, 2011

एक और बम ब्लास्ट

दिल्ली के लोगों को फिर एक बार धमाका झेलना पड़ा|  ऐसा नहीं है की यह पहली बार हो रहा है|  अभी दो महीने पहले भी इसी अदालत के बाहर धमाका हुआ लेकिन हमारी सुरक्षा एजेंसिओं ने कोई सबक नहीं सीखा|  अब जब फिर से धमाका हुआ तो तुरत फुरत सुरक्षा चौकस कर दी गई|  अगर यही सुरक्षा पहले से ही दुरुस्त होती तो शायद कुछ अमूल्य जिंदगियां बच जाती|
अब सवाल उठता है की सुरक्षा बल भी क्या करें जब हमारे नेताओं में ही इच्छाशक्ति की कमी है|  बम धमाकों के अभियुक्त यदि पकड़ भी ले तो उन्हें सजा देने की हिम्मत किसमे है?